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दुर्गा के अवतरण से आसुरी शक्तियाँ हैं हताश , राजस्थान समेंत अनेक राज्यों में नव दुर्गा अवसरों में हुयी घटनाऐं इसी हताशा का परिणाम

 


 भारतीय इतिहास और धर्म ग्रंथ पुरातन काल से ही दुष्टों आताताइयों अत्याचारियों के आतंक पर वीरो सदाचारियों धर्मात्माओं की सनातन विजय की पावन गाथा है । यह सत्य है कि समय-समय पर दुष्ट,आतातायी,अत्याचारी शक्तियां प्रबलता से सत्य, सदाचार एवं धर्म पर आक्रमण करती हैं और बहुत हद तक अधर्म का शासन भी स्थापित कर लेती हैं । लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि यह शक्तियां कभी भी धर्म को पूर्णता मिटा पाने में सफल नहीं हुई है धर्म की ज्योति कहीं ना कहीं किसी न किसी रूप में विद्यमान ही रहती है। पिछले 2500 वर्षों में ईसाइयत के जन्म के साथ जो षड्यंत्रात्मक कार्य शुरू हुए वह कार्य 1400 वर्ष पहले अरब में इस्लाम के पदार्पण से आतंक लूट हत्या और बलात्कार में बदलते हुए एशिया और यूरोप के अनेक देशों को अपने प्रभाव में लेते हुए सन 720 ईस्वी में भारत की पवित्र धरती को भी प्रताड़ित करने लगे। इस आतातायी आक्रमण में जहां रोम,ईरान,मिस्र व ईरान, ईराक की संपूर्ण सभ्यता एवं संस्कृतियां विनिष्ट  हो गई और  थोड़े ही समय में वहां आतंक का ध्वज स्थापित हो गया।  वहीं भारत में लगातार 1200 वर्षों के लंबे समय के आक्रमण के उपरांत और मिलकर भी इस्लाम ईसाइयत तथा मार्क्सवादी न तो भारतीय सभ्यता को ही और ना भारतीय संस्कृति को नष्ट कर सके। आजकल हो रही घटनाएं  इनकी इसी हताशा का परिणाम और प्रमाण है। हिंदू धर्म ग्रंथ दुर्गा सप्तशती में मां दुर्गा के अवतरण की घटना का वर्णन है उसमें जो  परिस्थितियां वर्णित है बिल्कुल वैसी ही आजकल की परिस्थितियां भी हैं उसमें बताया गया है कि रुरू के महाबलवान पुत्र दुर्गम ने अपनी शक्ति से समस्त दैवीय शक्तियों पर विजय प्राप्त कर ली थी और आज के ही समान वेदों को पढ़ने पढ़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया था इससे समस्त संसार में वैदिक धर्म सभ्यता व संस्कृति का लोप हो गया और अज्ञान का अंधकार दशों दिशाओं में छा गया। सभी अधर्म के मार्ग पर चलने लगे साधु समाज के लोग भी अनाचारी हो गए साधुता का स्थान नग्नता ने ले लिया। कुएं, बावड़ी, तालाब, सरिताएं व नदियां आज के ही समान नष्ट हो गई । पशु पक्षी भोजन व आवास की तलाश व वातावरण परिवर्तन के कारण मरने लगे। औषधियां विलुप्त होने लगी तीनों लोकों में अनाचार का ही राज्य स्थापित हो गया। गौ व गौ सेवकों पर अत्याचार होने लगा बहुत से ढोंगी गौ सेवकों के वेश में गायों को मारने काटने लगे।
दुर्गा सप्तशती में  दुर्गा अवतरण की घटनाओं का जैसा जिक्र है वैसा ही वातावरण बिल्कुल आज का है ऐसे समय में प्रताड़ित देवीय शक्ति वाले लोग भी कुछ कुछ अनाचार में लिप्त हो गये थे लेकिन फिर भी वे कुछ दैवीय गुणों के कारण दुर्गामासुर के अत्याचार से प्रताड़ित होने लगे तो उन्होंने देवी महामाया की शरण ली और उन्होंने एकजुट होकर अपनी व्यथा रो रोकर बताई। इसके उपरांत महामाया की प्रेरणा से इन सभी दैवीय शक्तियों में से एक एक किरण पुंज निकला और एक दिव्य शक्ति प्रकट होने लगी जिसने देखते एक अष्टभुजा देवी का रूप ले लिया। यह सभी देवताओं की सम्मिलित शक्ति थी इसमें हर देवता ने इस अष्टभुजा देवी को अपनी अपनी शक्ति प्रदान की और यह अष्टभुजा देवी दुर्गा कहलाई इसने देवताओं की सम्मिलित शक्ति का उपयोग किया और  दुर्गामासुर का विनाश किया।
इसी प्रकार युगों के इस्लामी ईसाई व मार्क्सवादी विचारधाराओं की दैत्य प्रवृत्तियों से त्रस्त होकर आधुनिक समय में देवी शक्तियां किसी चमत्कार की बाट जोह रही थी। 1857 के प्रयोग की असफलताओं और अंग्रेजों के दमनकारी नीतियों के कारण भारतीय समाज में क्रांतिकारी विचारधारा का जन्म हुआ और अंग्रेजों की दासता से मुक्ति की भावना जनता में बलबती हुई। समाज क्रांति की और बढ़ ही रहा था लेकिन गांधी जी ने उनके क्रांतिकारी कार्यों का विरोध किया और जनता ने फिर भी गांधी जी को अपना नेता मानकर क्रांति की मशाल को अहिंसात्मक आंदोलन में बदल दिया लेकिन 1921 में गांधी जी ने एक बार फिर पाला बदल कर क्रांति की मशाल मुस्लिमों के हाथ में सौंप दी । और हिन्दुऔं से रुपये पैसे लेकर मुस्लिमों को हथियार खरीदने को दिये जिससे वे अग्रेजों से युद्ध करते लेकिन यह केवल मुसलमानों की चाल थी जिसमें गांधी बरावर के हकदार थे। इस खिलाफत आंदोलन की असफलता के परिणाम हिन्दू  दैवीय शक्तियों को भुगतने पड़े लाखों हिंदु नारियों का बलात्कार हुआ और जनता को धर्मांतरण की पीड़ा सहनी पड़ी इसके बावजूद गांधी जी का  मुस्लिम मोह चरम पर था। गांधी जी ने आर्यसमाज के स्वामी श्रद्धानन्द द्वारा किये जा रहे धर्मान्तरित हिन्दू नर नारियों के शुद्धिकरण अभियान का पुरजोर विरोध किया और स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या का समर्थन किया । इन आश्चर्यजनक घटनाओं से दैवीय शक्तियाँ अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहीं थी। दैवीय शक्तियां जातियों में विभाजित थी, क्रांतिकारियों की कहीं  कमीं नहीं थी किन्तु जातिवाद और संकीर्ण मानसिकता उन्हें एकजुट नहीं होने देती थी। इस बात को एक व्यक्ति पूरी तरह समझ चुका था आजादी के लिए तो सभी प्रयासरत थे लेकिन यह आजादी अक्ष्क्षुण कैसे रहेंगी। इसका विचार कोई नहीं कर रहा था। ऐसे समय में 1923 ईस्वी में डा केशवराव बलिराम जी हेडगेवार ने दैवीय शक्तियों को एकजुट करने के लिए एक संगठन की नींव डाली। जिसे  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाम से जाना गया। छोटे छोटे बच्चों और उनके खेलों से शुरु हुआ यह संगठन जल्दी ही सारे देश में फेल गया और आजादी के समय बंटवारे के कारण हुई अराजकता में कमजोर हिन्दू समाज की सुरक्षा का भार इस संगठन ने बखूबी निभाया। लोगों को सकुशल बापस भारत लाने में इस संगठन ने जो कार्य किया आज भी उस समय के लोग याद करके अभिभूत हो जाते हैं। इसके बाद 1962 के भारत चीन युद्ध हो या 1971 का पाकिस्तान से युद्ध सैनिकों को भोजन सामिग्री पहुँचाने से लेकर उनकी चिंता करने का कार्य इस संगठन ने हमेशा निभाया है। बिना स्वार्थ के भारत में आयी हर आपदा में इस संगठन ने दैवीय कार्य किया है चाहे कहीं भूकम्प आया हो बाढ़ आयी हो सूखा पड़ा हो या अन्य कोई प्राकृतिक या मानवीय आपदा। चरखी दादरी पर हुये विमान हादसे में पीड़ित समुदाय मुस्लिम होने पर भी मानवीयता का परिचय देते हुए रा.स्व.से.संघ ने पीड़ितो की मदद की जिसे सभी लोग खूब याद करते हैं। इस प्रकार धीरे धीरे यह संगठन दैवीय शक्तियों के एकत्रीकरण का मंच बन गया और पहले प्रथम सरसंघचालक डा. हेडगेवार के नेत्रत्व में जो साधना आरंभ हुयी वह गुरुजी गोलबलकर ,बालासहाव देवरस, रज्जू भैया, सुदर्शन जी, अशोक सिंघल जैसे अनगिनित कर्मठ और श्रद्धेय महापुरुषों से होते हुये आज मोहन जी भागवत के हाथों में आकर नये नये आयामों में अपने आपको समायोजित करने लगी। साधना अभी भी चल रही है और इसके परिणाम सामने आने लगे हैं। भारतीय जनता पार्टी के रुप में समाज की चेतना दुर्गा का रुप ले रही है। कुछ स्थानों पर इस भारतीय जनता पार्टी रुपी दुर्गा ने जनशक्ति प्राप्त कर ली है और अपने प्रहारों से इन आसुरी शक्तियों का मान मर्दन करना शुरु कर दिया है। समस्त आसुरी शक्तियाँ इस दुर्गा के अवतरण से एकदम सदमें में पहुँच कर घवड़ाई हुयी हैं। क्योंकि उनकी समस्त चालाकियों और षडयंत्रों की पोल खुलती जा रही हैं। इनकी खोखली धर्मनिरपेक्षता और जातिवाद, परिवारबाद, भाई-भतीजाबाद सबकी पोल खुल गयी है और उनके सारे जादू गायब हो चुके हैं। इसलिए अब ये सभी आसुरी शक्तियाँ पूर्ण शक्ति व सामर्थ्य जुटाकर अंतिम युद्ध के लिए अपने वास्तविक रुप में सामने आती जा रहीं हैं क्योंकि उन्हैं अपनी मौत अपने सामने आती दिखाई दे रही है । भारतीय जनता पार्टी रुपी दुर्गा इनके समस्त चाल चहेरे और चरित्र को जनता के सामने ला रही है। ये बहुत चिंता और घवड़ाहट में हैं इसलिए अभी तक अलग अलग दिखाई देने वाली ये सभी असुरी शक्तियाँ अपने वास्तविक एकजुट स्वरुप में दिखाई देती जा रहीं हैं और इसी एकजुटता से समाज पर प्रहार कर रहीं हैं। लैकिन समाज को समझना चाहिये कि ये शक्तियाँ इसीलिए समाज पर प्रहार कर रहीं हैं। क्योंकि उस स्थान का समाज अभी तक इस भारतीय जनता पार्टी रुपी दुर्गा को अपनी शक्तियाँ देने में आनाकानी कर रहा है। अभी उन स्थानों की दैवीय शक्तियाँ एकजुट होकर भारतीय जनता पार्टी को अपनी शक्तियाँ प्रदान नही कर पायी है। और इसी का वे दुष्परिणाम भुगत रही हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, झारखंड, छत्तीसगंढ़, महाराष्ट्र, दिल्ली इत्यादि देश के अनेक राज्य इसके उदाहरण हैं। जहाँ रहरह कर इस तरह की गतिविधियों के ये आसुरी प्रवृतियाँ अंजाम दे रहीं हैं। नब दुर्गा में राजस्थान के करौली की घटना हो या फिर गुजरात के सांबरकांठा और मध्यप्रदेश में खरगौन और सेंधवा में रामनवमी पर हुआ बबाल इनकी इसी हताशा का परिणाम है। उधर दिल्ली के जेएनयू में रामनवमी पर हवन में मांस डालने का प्रयास हो या फिर पूजा स्थान पर मांस खाने की जिद करना तथा न मिलने पर मार पीट की घटना होना रामायण में वर्णित विश्वामित्र मुनि के यज्ञ की याद दिलाते हैं। सनद रहे कि एसे समय दैवीय शक्तियों की थोड़ी सी भी चूक इन आसुरी शक्तियों को फलने फूलने में मदद कर सकती हैं इसलिए यह आवश्यक है कि किसी प्रकार के प्रलोभन और बहकावे में न आते हुये लगातार इन पर प्रहार ही इनकों संसार से विदा करने के लिए आवश्यक है। हमारी एक भूल हमें हमारे दूसरे प्रदेशों में काश्मीर जैसी स्थितियाँ पैदा करने में सहायक हो सकती है।
लैकिन वहीं उत्तर प्रदेश व आसाम में शांति रहना दुर्गा के शक्ति सम्पन्न होने की गवाही देती हैं। आसाम के मुख्यमंत्री हिमंता विश्वशर्मा का वयान इस बात की तस्दीक करने के लिए काफी है। उन्हौने कहा है कि आसाम में अब मुस्लिम अल्पसंख्यक नही रहा अब उनकी आबादी 35 प्रतिशत हो चुकी है इसलिए शांति की गांरटी अब उनकी है।असम के लोग दहशत में हैं. उन्हे डर है कि आगे उनकी संस्कृति और सभ्यता का कोई नुकसान ता नही कर देगा.  सरमा ने कहा "अब  मुसलमानों को संस्कृति के संरक्षण की बात करनी चाहिये. क्योंकि अब उनकी आबादी हम से ज्यादा है. दस साल पहले तक हम अल्पसंख्यक नहीं थे, लेकिन अब हम अल्पसंख्यक में शिमिल हो गये हैं," 

 

 

  

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