माता लक्ष्मी की कथा - भक्तों के दुख दूर करने वाली माँ भगवती लक्ष्मी की कहानी
माता लक्ष्मी की कथा
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एक था बूढ़ा ब्राह्मण।वह रोजाना एक पीपल को जल से सींचने जाता था । और उस पीपल में से रोज एक लड़की निकलती थी और कहती थी पिताजी, "मैं आपके साथ जाऊँगी।" लड़की के पिता सम्बोधन से बूढ़ा दिन प्रतिदिन कमजोर होने लगा क्योंकि उसके पास पहले से ही छह-छह पुत्रियाँ थी। उसकी कमजोरी से चिंतित हो एक दिन बुढ़िया ने पूछा की क्या बात है? बूढ़ा बोला कि प्रतिदिन पीपल सींचने के बाद पीपल से एक लड़की निकलती है और कहती है पिताजी, "मैं आपके साथ जाऊँगी।" बुढ़िया बोली कि कल उसे ले आना। जहाँ छह लड़कियाँ पहले से ही हमारे घर में है वहाँ सातवीं लड़की और सही हम उसे भी पाल लेंंगे।
अगले दिन जब बूढ़ा पीपल सींचने गया तो उस लड़की को घर लिवा लाया। घर लाने के बाद बूढ़ा ब्राह्मण भिक्षा माँगने चला गया। आज उसे पिछले दिनों की अपेक्षा ज्यादा भिक्षा मिली । जब बुढ़िया भिक्षा से मिला आटा छानने लगी तो लड़की ने कहा कि " लाओ माँ, मैं छान देती हूँ।" जब वह आटा छानने बैठी तो परात भर गई। उसके बाद माँ खाना बनाने जाने लगी तो लड़की बोली कि "आज रसोई में मैं बनाऊँगी" तो बुढ़िया बोली कि नही बेटी, तेरे हाथ जल जाएँगे । लेकिन लड़की नहीं मानी और वह रसोई में खाना बनाने चली गई तब उसने तरह-तरह के व्यंजन बना डाले और आज सभी ने भरपेट खाना खाया। इससे पहले तो ये लोग आधा पेट भूखा ही रहते थे।
रात हुई तो बुढ़िया का भाई आ गया और बुढ़िया से कहने लगा कि दीदी मुझे तो भूख लगी है खाना बना दो खाना खाऊँगा। बुढ़िया बहुत परेशान हो गई कि अब खाना कहाँ से लाएगी। क्योंकी आटा घर मे नही था। तब लड़की ने माँ से परेशानी का कारण पूछा " क्या बात है माँ ?" उसने कहा कि तेरा मामा आया है और उसे भूख लगी है वह खाना खाएगा लेकिन रोटी तो सबने खा ली है अब उसके लिए कहाँ से आटा लाऊँगी। लड़की बोली कि " तू चिंता मत कर मैं बना दूँगी " और वह रसोई में गई और उसने मामा के लिए छत्तीसों व्यंजन बना दिए।
मामा ने भरपेट भोजन किया और कहा कि मैने कभी ऐसा खाना इससे पहले कभी नहीं खाया है। बुढ़िया ने कहा कि भाई यह तेरी भाँजी है उसी ने बनाया है।
शाम हुई तो लड़की ने अपनी माँ से कहा कि माँ चौका लगा कर चौके का दीपक जला देना, मैं कोठे में सोऊँगी। बुढ़िया बोली कि नही बेटी कोठे मे तुुुझे डर लगेगा लेकिन वह लड़की कि ना मुुुझे डर नही लगता, मैं अंदर कोठे में ही सोऊँगी। वह कोठे में ही जाकर सो गई। आधी रात को लड़की उठी और उसने चारों ओर निगाह मारी तो कोठे मे धन ही धन हो गया। वह बाहर जाने लगी तो बाहर एक और बूढ़ा ब्राह्मण सो रहा था। उसने देखा तो कहा कि बेटी तुुम कहाँ जा रही हो? लड़की बोली कि मैं तो दरिद्रता दूर करने आई थी। अगर तुम्हें भी दूर करवानी है तो करवा लो। उसने उस बूढे के घर में भी एक निगाह देखा तो चारों ओर धन ही धन हो गया।
सुबह सवेरे जब सब उठे तो लड़की को ना पाकर उसे ढूंढने लगे कि बेटी कहां चली गई। बाहर वाला बूढ़ा ब्राह्मण बोला कि वह तो लक्ष्मी माता थी जो तुम्हारे साथ मेरी दरिद्रता भी दूर कर गई। हे लक्ष्मी माता ! जैसे आपने उनकी दरिद्रता दूर की वैसे ही सबकी करना।
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एक था बूढ़ा ब्राह्मण।वह रोजाना एक पीपल को जल से सींचने जाता था । और उस पीपल में से रोज एक लड़की निकलती थी और कहती थी पिताजी, "मैं आपके साथ जाऊँगी।" लड़की के पिता सम्बोधन से बूढ़ा दिन प्रतिदिन कमजोर होने लगा क्योंकि उसके पास पहले से ही छह-छह पुत्रियाँ थी। उसकी कमजोरी से चिंतित हो एक दिन बुढ़िया ने पूछा की क्या बात है? बूढ़ा बोला कि प्रतिदिन पीपल सींचने के बाद पीपल से एक लड़की निकलती है और कहती है पिताजी, "मैं आपके साथ जाऊँगी।" बुढ़िया बोली कि कल उसे ले आना। जहाँ छह लड़कियाँ पहले से ही हमारे घर में है वहाँ सातवीं लड़की और सही हम उसे भी पाल लेंंगे।
अगले दिन जब बूढ़ा पीपल सींचने गया तो उस लड़की को घर लिवा लाया। घर लाने के बाद बूढ़ा ब्राह्मण भिक्षा माँगने चला गया। आज उसे पिछले दिनों की अपेक्षा ज्यादा भिक्षा मिली । जब बुढ़िया भिक्षा से मिला आटा छानने लगी तो लड़की ने कहा कि " लाओ माँ, मैं छान देती हूँ।" जब वह आटा छानने बैठी तो परात भर गई। उसके बाद माँ खाना बनाने जाने लगी तो लड़की बोली कि "आज रसोई में मैं बनाऊँगी" तो बुढ़िया बोली कि नही बेटी, तेरे हाथ जल जाएँगे । लेकिन लड़की नहीं मानी और वह रसोई में खाना बनाने चली गई तब उसने तरह-तरह के व्यंजन बना डाले और आज सभी ने भरपेट खाना खाया। इससे पहले तो ये लोग आधा पेट भूखा ही रहते थे।
रात हुई तो बुढ़िया का भाई आ गया और बुढ़िया से कहने लगा कि दीदी मुझे तो भूख लगी है खाना बना दो खाना खाऊँगा। बुढ़िया बहुत परेशान हो गई कि अब खाना कहाँ से लाएगी। क्योंकी आटा घर मे नही था। तब लड़की ने माँ से परेशानी का कारण पूछा " क्या बात है माँ ?" उसने कहा कि तेरा मामा आया है और उसे भूख लगी है वह खाना खाएगा लेकिन रोटी तो सबने खा ली है अब उसके लिए कहाँ से आटा लाऊँगी। लड़की बोली कि " तू चिंता मत कर मैं बना दूँगी " और वह रसोई में गई और उसने मामा के लिए छत्तीसों व्यंजन बना दिए।
मामा ने भरपेट भोजन किया और कहा कि मैने कभी ऐसा खाना इससे पहले कभी नहीं खाया है। बुढ़िया ने कहा कि भाई यह तेरी भाँजी है उसी ने बनाया है।
शाम हुई तो लड़की ने अपनी माँ से कहा कि माँ चौका लगा कर चौके का दीपक जला देना, मैं कोठे में सोऊँगी। बुढ़िया बोली कि नही बेटी कोठे मे तुुुझे डर लगेगा लेकिन वह लड़की कि ना मुुुझे डर नही लगता, मैं अंदर कोठे में ही सोऊँगी। वह कोठे में ही जाकर सो गई। आधी रात को लड़की उठी और उसने चारों ओर निगाह मारी तो कोठे मे धन ही धन हो गया। वह बाहर जाने लगी तो बाहर एक और बूढ़ा ब्राह्मण सो रहा था। उसने देखा तो कहा कि बेटी तुुम कहाँ जा रही हो? लड़की बोली कि मैं तो दरिद्रता दूर करने आई थी। अगर तुम्हें भी दूर करवानी है तो करवा लो। उसने उस बूढे के घर में भी एक निगाह देखा तो चारों ओर धन ही धन हो गया।
सुबह सवेरे जब सब उठे तो लड़की को ना पाकर उसे ढूंढने लगे कि बेटी कहां चली गई। बाहर वाला बूढ़ा ब्राह्मण बोला कि वह तो लक्ष्मी माता थी जो तुम्हारे साथ मेरी दरिद्रता भी दूर कर गई। हे लक्ष्मी माता ! जैसे आपने उनकी दरिद्रता दूर की वैसे ही सबकी करना।
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