विश्व मंदी के दौर मे केंद्रीय बैंके अपने नियमों को पुनः परिभाषित करे । रघुराम राजन
सभी जानते हैं कि आज पूरा विश्व महामंदी की चपेट में है शायद संसार का कोई देश इस मंदी की चपेट में आनेbh को मौद्रिक नीति को उदार बनाने की होड़ के प्रति आगाह करते रहे हैं उन्होंने कहा कि भारत के हालात अलग हैं यहां पर आरबीआई को अपने निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए नीतिगत दरों में कटौती करनी है यह बात उन्होंने लंदन बिजनेस स्कूल मे एक सम्मेलन के दौरान कही ।उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुनिया के देशों को सहमति से महामंदी के समाधान खोजने के लिए अपने
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विशेष तौर पर जब उनसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में ब्याज दरों में कटौती के बारे पूछा गया तो उन्होंने कहा "मैं जहां तक हो सकता है बाजार की प्रतिक्रियाओं को अलग रखता हूं। हम (भारत) अभी भी ऐसी स्थिति में जहां हमें निवेश को प्रोत्साहित करना है और मैं उसके बारे में ज्यादा चिंतित हूं।"
उन्होंने आगे कहा कि वे मैं परिसंपत्तियों (बांड, शेयर तथा उनके डेरिवेटिव, रीयल एस्टेट और अन्य पूंजीगत उत्पाद आदि) की मूल्य वृद्धि से जुड़ी प्रतिक्रिया को अलग रखते हैं और ज्यादा इस बारे में सोचते हैं कि क्या इससे ब्याज दर कम होगी और कंपनियों को सस्ता कर्ज मिलेगा ताकि वे निवेश करें। हालांकि यह मुद्दा अन्य बाजारों के लिए बेहद जटिल हो जाता है।
आरबीआई गवर्नर ने ये बाते एलबीएस के परिसर में केंद्रीय बैंक का दृष्टिकोण विषय पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित करने के दौरान कहीं उन्होंने वृद्धि के लिए अतिशय दबाव का उल्लेख करते हुुुए बताया केन्द्रीय बैंकों पर पहल करने का भारी दबाव पड़ता है। राजन ने कहा कि आर्थिक संकट के सात साल बाद अब तक केंद्रीय बैंकों ने बहुत कुछ किया है। उन्होंने कहा सवाल यह है हम ऐसे दायरे में प्रवेश कर रहे हैं जहां हम बिना किसी आधार के वृद्धि पैदा कर रहे हैं और वद्धि के सृजन के बजाय एक जगह से दूसरी जगह वद्धि को खिसका रहे हैं। निश्चित तौर पर महामंदी के दौर में इसका इतिहास रहा है जबकि हम प्रतिस्पर्धी अवमूल्य कर रहे थे।
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बैंको के नियम बनाने चाहिए उन्होंने कहा लेकिन मुझे यह चिंता जरूर है कि हम वृद्धि प्रोत्साहित करने के लिए धीरे-धीरे उन्हीं परिस्थितियों को ओर बढ़ रहे हैं जो 1930 के दशक सभी जानते हैं कि आज पूरा विश्व महामंदी की चपेट में है शायद संसार का कोई देश इस मंदी की चपेट में आने से अपने को नहीं बचा पाया है। लोग पिछली सदी की सर्वाधिक मंदी से इस साल की मंंदी की तुुुुलना कर रहे हैं।
विशेष तौर पर जब उनसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में ब्याज दरों में कटौती के बारे पूछा गया तो उन्होंने कहा "मैं जहां तक हो सकता है बाजार की प्रतिक्रियाओं को अलग रखता हूं। हम (भारत) अभी भी ऐसी स्थिति में जहां हमें निवेश को प्रोत्साहित करना है और मैं उसके बारे में ज्यादा चिंतित हूं।"
उन्होंने आगे कहा कि वे मैं परिसंपत्तियों (बांड, शेयर तथा उनके डेरिवेटिव, रीयल एस्टेट और अन्य पूंजीगत उत्पाद आदि) की मूल्य वृद्धि से जुड़ी प्रतिक्रिया को अलग रखते हैं और ज्यादा इस बारे में सोचते हैं कि क्या इससे ब्याज दर कम होगी और कंपनियों को सस्ता कर्ज मिलेगा ताकि वे निवेश करें। हालांकि यह मुद्दा अन्य बाजारों के लिए बेहद जटिल हो जाता है।
आरबीआई गवर्नर ने ये बाते एलबीएस के परिसर में केंद्रीय बैंक का दृष्टिकोण विषय पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित करने के दौरान कहीं उन्होंने वृद्धि के लिए अतिशय दबाव का उल्लेख करते हुुुए बताया केन्द्रीय बैंकों पर पहल करने का भारी दबाव पड़ता है। राजन ने कहा कि आर्थिक संकट के सात साल बाद अब तक केंद्रीय बैंकों ने बहुत कुछ किया है। उन्होंने कहा सवाल यह है हम ऐसे दायरे में प्रवेश कर रहे हैं जहां हम बिना किसी आधार के वृद्धि पैदा कर रहे हैं और वद्धि के सृजन के बजाय एक जगह से दूसरी जगह वद्धि को खिसका रहे हैं। निश्चित तौर पर महामंदी के दौर में इसका इतिहास रहा है जबकि हम प्रतिस्पर्धी अवमूल्य कर रहे थे।
राजन ने पूंजी प्रवाह पर कहा कि विभिन्न देशों को आपस मे मिल कर काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा हमें अपनी पहलों के असर को सतर्कता से देखना चाहिए कि जो नियम हमारे पास हैं - क्या वे स्वीकार्य है या स्वीकार्य नहीं है - हमे उस पर पुनर्विचार की जरूरत है।
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