राष्ट्रीय चरित्र क्या है ?- माधव सदाशिव गोलवलकर " श्री गुरुजी "
राष्ट्रीय चरित्र क्या है ?- माधव सदाशिव गोलवलकर " श्री गुरुजी "
नमामि गंगे न्यूज़। ब्यूरो रिपोर्टः ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय।
आजकल देश में राष्ट्र विरोधी अनेको प्रकार से आघात कर रहे हैं और अपने को दर्शा रहे है कि जाने कितने वड़े देशभक्त हैं एसे में यह जरुरी हो जाता है कि राष्ट्रीय चरित्र के वारे में आइना सामने रखा जाए जिससे सभी देशभक्त व देश विरोधी चहेरा देख सके।
राष्ट्रीय चारित्र का मूलाधार अपनापन तथा प्रेम है। यह मेरा राष्ट्र है, मैं इसका अंश मात्र हूँ, इसकी भलाई मेरी भलाई है, मैं मरूँ, चाहे परिवार डूबे, किन्तु राष्ट्र जिए, राष्ट्र अच्छा रहे- यह भाव जब उत्पन्न होता है, तब राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण होता है।
मेरे कार्य से भले ही लाभ न हो, कम से कम हानि तो न हो- यह भाव उत्पन्न होने पर चारित्र प्रकट होता है। जब यह विचार जाग्रत होता है और दिन रात राष्ट्र-चिन्तन होता है, राष्ट्र को ऊपर उठाने का, राष्ट्र को सुखी करने का, राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति के प्रति कर्त्तव्य पूर्ति का विचार होता है ।
मैं अपने बारे में न सोचूँगा, राष्ट्र सुखी है या नहीं केवल यही सोचूँगा, मैं रहा या न रहा, उससे क्या, राष्ट्र रहना चाहिये - जब इस प्रकार का भाव जागृत होता है, तब इस राष्ट्र-प्रेम से परिपूर्ण राष्ट्र-कल्पना से शुद्ध चारित्र उत्पन्न होता है
नमामि गंगे न्यूज़। ब्यूरो रिपोर्टः ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय।
आजकल देश में राष्ट्र विरोधी अनेको प्रकार से आघात कर रहे हैं और अपने को दर्शा रहे है कि जाने कितने वड़े देशभक्त हैं एसे में यह जरुरी हो जाता है कि राष्ट्रीय चरित्र के वारे में आइना सामने रखा जाए जिससे सभी देशभक्त व देश विरोधी चहेरा देख सके।
राष्ट्रीय चारित्र का मूलाधार अपनापन तथा प्रेम है। यह मेरा राष्ट्र है, मैं इसका अंश मात्र हूँ, इसकी भलाई मेरी भलाई है, मैं मरूँ, चाहे परिवार डूबे, किन्तु राष्ट्र जिए, राष्ट्र अच्छा रहे- यह भाव जब उत्पन्न होता है, तब राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण होता है।
मेरे कार्य से भले ही लाभ न हो, कम से कम हानि तो न हो- यह भाव उत्पन्न होने पर चारित्र प्रकट होता है। जब यह विचार जाग्रत होता है और दिन रात राष्ट्र-चिन्तन होता है, राष्ट्र को ऊपर उठाने का, राष्ट्र को सुखी करने का, राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति के प्रति कर्त्तव्य पूर्ति का विचार होता है ।
मैं अपने बारे में न सोचूँगा, राष्ट्र सुखी है या नहीं केवल यही सोचूँगा, मैं रहा या न रहा, उससे क्या, राष्ट्र रहना चाहिये - जब इस प्रकार का भाव जागृत होता है, तब इस राष्ट्र-प्रेम से परिपूर्ण राष्ट्र-कल्पना से शुद्ध चारित्र उत्पन्न होता है
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