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हनुमान चालीसा श्री हनुमान बजरंग वली के 108 नामों का स्तवन होने के कारण अति प्रभावकारी महामंत्र है।

हनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास जी की एक अमर रचना है। गोस्वामी तुलसी दास जी ने अपने प्रभु श्री राम जी के परम भक्त श्री हनुमान जी की स्तुति में कुछ ग्रंथ लिखे जिनमे प्रमुख नाम हनुमान बाहुक, बजरंग वाण तथा हनुमान चालीसा है। और इनमें भी समाज में सबसे ज्यादा प्रचलित हनुमान चालीसा ही है। यह सामान्य शब्दों में लिखा हुआ हनुमान जी का स्तवन है जिसमें हनुमान जी के कुल 121 नामों को सम्पूर्ण हनुमान चालीसा में स्थान दिया गया है। और यह नाम जप से भी ज्यादा प्रभावकारी सिद्ध हुआ है सामान्य जन मानस में हनुमान चालीसा ने अपना गहन प्रभाव छोड़ा है इसका पारायण लोग लगभग हर कार्य के लिए करते हैं। हनुमान जी के भक्त हनुमान चालीसा के पाठ से अपने समस्त कार्यों की शुरुरात करते हैं और लाभ प्राप्त करते हैं। बहुत से लोग कठिन परिस्थितियों में हनुमान चालीसा के पाठ से सुगमता प्राप्त करते हैं। अनेकों लोगों ने हनुमान चालीसा के द्वारा गहनतम कठिन परिस्थितियों से इसी के पाठ व पारायण से मुक्ति प्राप्त की है। वैसे मैने देखा है कि जब परिस्थितियाँ अति गंभीर हो और किसी प्रकार से कोई आशा की किरण न दिखाई दे रही हो तब हनुमान चालीसा के साथ बजरंग वाण का प्रभाव बहुत प्रभावकारी है। और जब दुश्मनों ने सारे रास्ते बंद कर दिये हों और शत्रु चैन ही न लेने दे रहा हो तो ससंकल्प बजरंग बाण का प्रभाव अप्रितम होता है।
हनुमान चालीसा में जो चमत्कारिक प्रभाव पैदा हुआ है वह है हनुमान जी के नामों का जिनके स्मरण से भक्त के सारे कार्य बनने लगते हैं उसकी समस्याओं का निदान हो जाता है। आज हम बताने जा रहे हैं कि हनुमान चालीसा के दोहों व चालीस चौपाईयों में प्रभु के किन नामों का वर्णन किया गया है आइये जानते हैं। नामों के सामने जो नम्बर लिखे हैं वे हनुमत् सहस्रनाम में दिये गये नामों के नम्बर हैं जिनका उल्लेख हनुमान चालीसा में भी हुआ है।
 श्री हनुमान चालीसा
हनुमान चालीसा श्री हनुमान बजरंग वली के 108 नामों का स्तवन होने के कारण अति प्रभावकारी महामंत्र है। namamigangenews
हनुमान चालीसा श्री हनुमान बजरंग वली के 108 नामों का स्तवन होने के कारण अति प्रभावकारी महामंत्र है। 

श्री गुरु चरण सरोज रज. निज मन मुकुरु सुधार ।
बरनऊ रघुवर विमल जसु, जो दायक फल चार ।।
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरो पवन कुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेस विकार।।
1.    पवन कुमारपवन देव के पुत्र
चौपाई---
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।जय कपीस तिहु लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवन सुत नामा।।
2.    हनुमान- हनु ( ठोड़ी) मान (मार- टूटी हुयी)--- टूटी ठोड़ी वाले
3.    ज्ञान सागरज्ञान की खान(242)
4.    गुन सागरगुणों की खान (330)
5.    कपीस--- कपियों अर्थात बन्दरों भालुओं लंगूरों के ईश या स्वामी(137)
6.    तिहु लोक उजागरतीनों लोकों में उजाला करने वाले(217)
7.    राम दूत --- राम जी के दूत(110)
8.    अतुलित बल धाम--- अपरिमित बल के धाम या महाबलशाली(425)   ( 905)
9.    अंजनि पुत्रमाता अंजनि के पुत्र नाम से जाने जाने वाले(828)(70)
10.  पवन सुत--- पवन देव के पुत्र नाम वाले(583)
महावीर विक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन वरन विराज सुवेसा कानन कुण्डल कुंचित केशा।।
11.  महावीर  महानतम वीर(321)
12.  विक्रम  विशेष पराक्रमी(130)
13. बजरंगीबज्र जैसे अंगों वाले(777)
14.  कुमति निवारबुरी मति अर्थात बुरे विचारों को दूर करने वाले
15. सुमति के संगीसुमति अर्थात अच्छे विचारों का साथ देने वाले
16. कंचन वरन विराज --कंचन अर्थात सोने के जैसे दीप्तिमान रंग के  अच्छे वेश में सुशोभित रहने वाले (884)
17.  सुवेशासुन्दर वेश धारण करने वाले(504)
18. कानन कुण्डल- कानों में कुण्डल धारण करने वाले(847)
19. कुंचित केशाघुंघराले बालों वाले(579)
हाथ बज्र ध्वजा विराजै काधें मूँज जनेऊ साजै।।
शंकर सुवन केशरी नंदन तेज प्रताप महाजग बंदन।।

हनुमान चालीसा श्री हनुमान बजरंग वली के 108 नामों का स्तवन होने के कारण अति प्रभावकारी महामंत्र है।
हनुमान चालीसा श्री हनुमान बजरंग वली के 108 नामों का स्तवन होने के कारण अति प्रभावकारी महामंत्र है। 




                      20.  हाथ बज्र – जिनके एक हाथ में बज्र जैसी गदा है।(908)
21.  ध्वजा विराजै- और दूसरे हाथ में जिसके विजय ध्वजा फहरा रही है।(902)
22. काधें मूँज जनेऊ साजैजिनके कंधे पर मूँज की जनेऊ सुशोभित है।(881)
23.  शंकर सुवन- जो शंकर भगवान के अवतार हैं।(546)
24. केशरी नंदनजो बानरराज केशरी के पुत्र हैं।
25. तेज प्रताप— जो सूर्य के समान तेज वाले हैं।(504)
26. महाजग बंदन- जो संपूर्ण जगत के द्वारा वंदनीय है।(428)
विद्यावान गुनी अति चातुर  राम काज करिवे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिवे को रसिया ।राम लखन सीता मन वसिया।।
27. विद्यावान--- जो समस्त विद्याओं में पारंगत हैं।(889)
28. गुनीजो सर्वगुण सम्पन्न हैं।(880)
29. अति चातुर- जो बहुत चतुर हैं। सभी कार्यों को करने में कुशल हैं।(514)
30. राम काज करिवे को आतुर- राम के कार्य करने के लिए जो उत्सुक हैं।(133)
31. प्रभु चरित्र सुनिवे को रसिया – जो प्रभु के चरित्र सुनने को हमेंशा लालायित रहते हैं।(544)
32. राम सीता मन वसिया- राम जी के हृदय में बसे हैं।(811)
33. लखन मन वसिया- लक्ष्मण जी के मन में बसे हैं।(811)
34. सीता मन वसियासीता जी के मन में विराजमान हैं।(811)
 सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावाविकट रुप धरि लंक जरावा।
 भीम रुप धरि असुर संहारेरामचन्द्र जी के काज सबांरे।।
35.  सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा जो सूक्ष्म रुप रखने वाले हैं।(322)
36. विकट रुप धरि लंक जरावा— जो भयानक रुप रखने वाले है।(523)
37. लंक जरावा --जिन्हौने लंका को जलाया है।(216)
38. भीम रुप धरि असुर संहारेअसुरों को संहारते समय जिन्हौने अपना (भीमकाय)विशाल रुप रख लिया था।(64)
39. रामचन्द्र जी के काज सबांरे- जो राम जी के कार्यों को संवारने वाले हैं।(133)
लाय संजीवन लखन जियाए  श्री रघुवीर हरषि उर लाऐ।
रघुपति कीन्हीं बहुत बढ़ाई  तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
40.  लाय संजीवनजो संजीवनी लाने वाले हैं।(510)
41. लखन जियाए जिनके कारण लक्ष्मण जी पुनः जीवित हुये।(228)
42. श्री रघुवीर हरषि उर लाऐ- श्री रघुवीर जी ने जिनको अपने हृदय  लगाया है।(525)
43. रघुपति कीन्हीं बहुत बढ़ाईश्री रघुपति जी के कहे अनुसार काम को बढ़ाने वाले(811)
44. तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई- ---जो श्री राम जी को भरत के समान प्रिय हैं।
 सहस बदन तुम्हरो जस गावे। अस कहि श्री पति कंठ लगावै।
सनकादिक ब्रह्मदि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।
45. सहस बदन तुम्हरो जस गावे--- जिनका हजारों लोग गुण गान करते हैं। (308)
46. अस कहि श्री पति कंठ लगावै।--- जिनको भगवान लक्ष्मीपति अपने हृदय से लगाते हैं।()
47.  सनकादिक ---सनक सनन्दन आदि मुनि जिनका गुणगान करते हैं।
48. ब्रह्मदि – ब्रह्मजी भी जिनका गुण गाते हैं।(695)
49. मुनीसाऋषि मुनि जिनके गुण गाते है।(197)
50. नारदजिनका नारद जी गुणगान करते हैं।(423)
51. सारद- जिनका माँ शारदा भी गुणगान करती है।(428)
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते  कवि कौविद कहि सके कहाँते।
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा  राम मिलाय राज पद दीन्हा।
52.  जिनका गुण गान यम देव गाते हैं।
53.  जिनके गुण कुबेर गाते हैं।(722)
54. दसों दिशाओं के दसों दिगपाल या रक्षक जिनके गुण गाते हैं।(615)
55.  कवि जिनके गुण गाते हैं।
56.  कोविद अर्थात विद्वान जिनके गुण गाते रहते हैं।(863)
57.  जिन्हौने सुग्रीव जी पर उपकार किया है।
58.  जिन्हौने सुग्रीव जी को राम से मिलाया है।
59. जिन्हौने सुग्रीव जी को राज्य पद दिलाया है।
तुम्हरों मंत्र विभीषन माना  लंकेश्वर भये सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू  लीन्हों ताहि मधुर फल जानू।
60.  जिन्हौने  विभीषण जी को गूड़ रहस्य की  बाते बतायी हैं।
61.  जिन्हौने विभीषण को लंकेश्वर बनाया है।(569)
62.  सहस्रो युग योजनों की दूरी तय करने वाले(324)
63.  और उस दूरी पर सूर्य देव को जो मीठा फल समझ कर खाने वाले।
प्रभु मुद्रिका मिलि मुख माहि  जलधि लाँघ गये अजरज नाहि।।
दुर्गम काज जगत के जैते  सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
64.  जिन्हौने प्रभु की अंगूठी को अपने मुँह में रखकर सीता माँ तक पहुँचाया(148)
65.  जिन्हौने समुद्र को लाँघने का अचरज भरा काम किया है।(154)
66. जो जगत के दुर्गम से दुर्गम कार्यों को अपने अनुग्रह से जो सरल कर देते हैं।
राम दुआरे तुम रखवारे ।होत  आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहें तुम्हारी सरना  तुम रक्षक काहू को डरना।।
67.  जो मृत्यू के वाद राम जी के दरवार में जो अपने भक्त की रक्षा करते हैं।(838)
68.  राम जी के दरबार में जाने की आज्ञा प्रदान करने वाले()
69. जिनका शरण में जाने से सभी सुख मिलते हैं।(94)
70.  और जिनके रक्षक हो जाने पर किसी भी प्रकार का कष्ट नही रहता है।(276)

आपन तेज सम्हारों आपे  तीनो लोक हांक ते काँपे।।
भूत पिचास निकट नहि आवें  महावीर जब नाम सुनावे।।
71.    जिसने अपना तेज अपने आप में समैट रखा है। (395)
72.    जिसकी हाँक से ही तीनों लोक थर्राते हैं।(878)
73.    भूत जिसके पास नही आते।(978)
74.    जिसके पास आने से पिचास घवराते हैं।(678)
75.    महावीर हनुमान जी का नाम स्मरण ही करता है।
नाशे रोग हरे सब पीरा  जपत निरंतर हनुमत वीरा।
संकट ते हनुमान छुड़ाबें  मन क्रम बचन ध्यान जो लावें
76.  नाशे रोग--- जो रोगों का विनाश कर देते हैं।(32)
77. हरे सब पीराजो पीड़ा को दूर कर देते हैं।
78.  जो मन से ध्यान करने वाले के संकट दूर करते हैं।
79. जो कर्म में अपना ध्यान करने वाले के कष्ट दूर करने वाले हैं।
80.  जो बचन से ध्यान करने वाले के सम्पूर्ण कष्ट दूर करने वाले है।
सब पर राम तपस्वी राजा  ।तिनके काम सकल तुम साजा ।।
और मनोरथ जो कोई लावे  सोई अमित जीवन फल पावे।।
81.  जो राम जी के भक्तों के कार्यों को करने को लालायित रहते हैं।
82.  जो राम भक्तों के मनोरथ पूर्ण करने वाले हैं।
83.  जो अपने भक्तों को राम भक्ति(जीवन फलप्रदान करते हैं।
चारों युग परताप तुम्हारा  है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु संत के तुम रखवारे  असुर निकंदन राम दुलारे।।
84.  जिनका प्रताप चारों युगों में फैला हुआ है।
85.  जो सम्पूर्ण जगत को उजागर करने वाले हैं।
86. जो साधु संतों की रखवाली करन वाले है।
87.  जो असुरों के निकंदन अर्थात संहारकर्ता हैं।
88.  जो राम जी के दुलारे अर्थात प्यारे हैं।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता  अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा  सदा रहो रघुपति के दासा।।
89.  जो अष्ट सिद्धि देने वाले हैं।(209)
90.  जो नौ तरह की संपत्ति देने वाले हैं।(15)
91.  जिनको जानकी जी ने वरदान दिया है।
92.   जो रामनाम नामक औषधि रखने वाले हैं।
93.  जिन्हौने हमेशा के लिए रघुपति जी की दासता स्वीकार की है।(248)

तुम्हरे भजन राम को पावै  जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
 अन्तकाल रघुबर पुर जाई  जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
94.  जिनके भजनों से राम जी की प्राप्ति हो जाती है।(821)
95.  जिनके भजनों को सुनने से जन्म जन्म के दुःख भूले जा सकते हैं।
96.  जो अपने भक्तों को मृत्यु उपरांत रघुवीर जी के लोक में पहुँचाते हैं।(384)
97. जो अपने भक्तों को रघुवीर के लोक में भगवान का भक्त बना देते हैं। (195)
 और देवता चित्त  धरई  हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
 संकट कटै मिटै सब पीरा  जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
98. जो अपने भक्तों का सभी प्रकार से भला करते हैं।(484)
99. जो भक्तों के संकट दूर करने वाले हैं।(786)
 100.  जो अपने भक्तों की पीड़ा दूर करने वाले है।(631)
 101.  जो हनुमान है बलियों के भी वीर हैं।
 जै जै जै हनुमान गोसाईं  कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
 जो सत बार पाठ कर कोई  छूटहि बंदि महा सुख होई।।
102. जो गोस्वामी जी के भी गौसाई है।
103. जो गुरुओं की तरह कृपा दृष्टि रखते हैं।
104. जिनकी सौ बार उपासना हर प्रकार के बंधन से मुक्त करती है।
 जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा  होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
 तुलसीदास सदा हरि चेरा  कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
105. जो नित्य ध्यान में लाने पर सिद्धियाँ प्रदान करते हैं।
106. जो तुलसीदास  जी के हृदय में निवास करते हैं।
दोहा.
  पवन तनय संकट हरनमंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहितहृदय बसहि सुर भूप।।
107. जो पवन अर्थात बायुदेव के पुत्र हैं।
108. जो स्वयं ही मंगल मूर्ति हैं।
       अंत में यह कहकर अपनी बात समाप्त करुँगा कि हनुमान चालीसा तुलसीदास जी का लिखा वह एक अप्रितम ग्रंथ हैं जिसने न जाने कितने लोगों के कष्ट दूर किये हैं। इसके शब्दों में मंत्रों की अद्भुत शक्ति है। जिसके कारण प्रत्येक व्यक्ति जिसे धर्म, अर्थ, काम या मोक्ष किसी की भी आवश्यकता हो प्रत्येक को लाभ मिलेगा। बस उसे ध्यान पूर्वक इसे पढ़ने की जरुरत है। और साथ ही हनुमान जी में पूर्ण आस्था व विश्वास भी अनुस्ठान करने वाले में अवश्य ही होना चाहिये।
    हनुमान चालीसा प्रत्येक आस्थावान व्यक्ति को उसकी आस्था विश्वास व भगवान श्री बजरंग वली में विश्वास के आधार पर फल प्रदान करेगा एसी कामना के साथ 
                                                       आपका
                                              ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय
                                                      सम्पादक
                                              नमामि गंगे न्यूज पोर्टल

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