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अमर कहानी भक्त और भगवान की- निष्काम प्रेम ही भगवान को पाने का सबसे सरल तरीका है।

अमर कहानी भक्त और भगवान की- भगवान को पाने का सरलतम तरीका भगवान के प्रति निश्छल व निष्काम प्रेम ही है। भगवान आपसे कुछ नही चाहता है केवल चाहता है कि उसका भक्त उसमें कितनी आस्था रखता है। उसकी आस्था कहीं स्वार्थ के वशीभूत तो नही है। और अगर मानव इस परीक्षा में सफल हो जाए तो उसे वह सब कुछ मिल जाता है जिसकी उसने कभी आशा भी नही की होती। आज की कहानी विल्कुल एसी ही है जिसमें अपने निस्वार्थ प्रेम के कारण ही इस बुढ़िया ने परमगति ही नही पायी अपितु हमेशा हमेशा के लिए परमधाम में स्थान प्राप्त कर लिया। यह अमर कहानी निष्काम प्रेम और समर्पण की एक अच्छी मिशाल है।

अमर कहानी भक्त और भगवान की- निष्काम प्रेम ही भगवान को पाने का सबसे सरल तरीका है।
अमर कहानी भक्त और भगवान की- निष्काम प्रेम ही भगवान को पाने का सबसे सरल तरीका है।
  
एक गाँव था जिसमें एक बुढ़िया रहती थी । चूँकि बुढ़िया के कोई संतान नही थी इसलिए बेचारी बुढ़िया अकेली रहती थी । एक दिन उस गाँव में एक संत आए ।
   अतः बुढ़िया ने महात्मा जी का बहुत ही प्रेम पूर्वक आदर सत्कार किया । जब महात्मा जी जाने लगे तो बूढ़ी माँ ने कहा – “ महात्मा जी !
आप तो ईश्वर के परम भक्त है । अतः कृपा करके मुझे ऐसा आशीर्वाद दीजिये जिससे मेरा अकेलापन दूर हो जाये । अकेले रह रह करके उब चुकी हूँ।*
तब उन महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए अपनी झोली में से गोपाल जी की एक मूर्ति निकाली और बुढ़िया माँ को देते हुए कहा – “ माई ये लो ये आपका बालक है, इसका अपने बच्चे की तरह प्रेम पूर्वक लालन-पालन करती रहना।
बुढ़िया माँ बड़े ही लाड़-प्यार से उस मूर्ति को साकार मानते हुये लालन-पालन करने लगी।
एक दिन गाँव के कुछ शरारती बच्चों ने देखा कि बुढ़िया मूर्ती को अपने बच्चे की तरह लाड़ कर रही है । नटखट बच्चो को अब बुढ़िया से हँसी मजाक करने की सूझी। उन्होंने बुढ़िया से कहा - "अरी अम्मा सुन ! आज हमारे गाँव में जंगल से एक भेड़िया आ गया है,यह भेड़िया छोटे बच्चो को उठाकर ले जाता है। और मारकर खा जाता है।  अम्मा तू अपने लाल का ख्याल रखना, कही भेड़िया इसे उठाकर ना ले जाये !
बुढ़िया माई ने अपनी उस मूर्ति रुपी गोपाल को उसी समय कुटिया मे विराजमान किया और खुद लाठी  लेकर दरवाजे पर पहरा लगाने के लिए बैठ गयी।
अब तो यह रोजाना की बात हो गयी कि बुढ़िया अपने लाल को भेड़िये से बचाने के लिये भूखी-प्यासी दरवाजे पर पहरा देती थी । पहरा देते-देते कई दिन बीत गये।और यह पाँचवा दिन था । बुढ़िया पाँच दिन और पाँच रात से लगातार, बिना पलके झपकाये भेड़िये से अपने उस गोपाल की रक्षा के लिये पहरा देती रही।
उस भोली-भाली मैय्या का यह भाव देखकर, ठाकुर जी का ह्रदय प्रेम से भर गया,और अब ठाकुर जी को बुढ़िया माँ के प्रेम को प्रत्यक्ष देखने की इच्छा हुयी।अब गोपाल जी बहुत ही सुंदर रुप में, वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित होकर बुढ़िया के पास आये।
 किन्तु ठाकुर जी के पाँवों की आहट सुनकर बुढ़िया डर गई कि "कही मेरे लाल को उठाने दुष्ट भेड़िया तो नहीं आ गया! " बुढ़िया लाठी लेकर भेड़िये को भगाने के लिये उठ खड़ी हुई ।
तब दुनिया को आश्चर्यचकित करने वाले मदन मोहन लीला विहारी ने कहा – “मैय्या मैं हूँ गोपाल, मैं तो तुम्हारा वही गोपाल हूँ -जिसकी तुम रक्षा कर रही हो!"

अमर कहानी भक्त और भगवान की ------- भगवान की भक्ति कहानियाँ--------- महान भक्तों की कहानियाँ 

माई ने कहा - "क्या? चल चल दूर हट रे, बहुत देखे है तेरे जैसे, तेरे जैसे सैकड़ो अपने लाल पर वार दूँ, अब मत कहियो ऐसे ! चल भाग जा, यहाँ से ।
ठाकुर जी ने जब मैय्या यह भाव और एकनिष्ठता देखी तो वे बहुत ज्यादा प्रसन्न हुए।
ठाकुर जी मैय्या से बोले - "अरी मेरी भोली भाली मैय्या, मैं ही त्रिलोकीनाथ गोपाल हूँ, है माँ माँग ले जो वर तू मुझसे माँगना चाहती है , मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हूँ"
*बुढ़िया बोली - "अच्छा आप अगर सच में त्रिलोकीनाथ भगवान हो,तो मेरा प्रणाम स्वीकार करें। और मुझे वरदान दें कि मेरे प्राण प्यारे मेरे लाल को भेड़िया न ले जायअब भगवान को उस बुढ़िया के भोलेपन पर औऱ भी ज्यादा प्रसन्न हुये।
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और प्रसन्न होकर बोले – है माँ मातेश्वरी आज से न तेरे लाल को कोई डर होगा न तुझे तुम दोनो ही अब मेरे धाम में रहना। इस प्रकार भगवान बुढ़िया को लेकर अपने धाम चले गये।
भगवान को पाने का सबसे सरल तरीका भगवान को निष्काम  प्रेम करो ऐसा प्रेम जैसा कि बुढ़िया ने किया....
हमें अपने अन्दर बैठे ईश्वरीय अंश की काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी भेड़ियों से रक्षा करनी चाहिए ।
जब हम पूरी तरह से तन्मय होकर अपनी पवित्रता और शांति की रक्षा करते है तो एक न एक दिन ईश्वर हमें दर्शन जरुर देते हैl

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