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समाज की मानसिक स्वस्थता ही महिलाओं के सम्मान की गारंटी है।

समाज की मानसिक स्वस्थता ही महिलाओं के सम्मान की गारंटी है।

समाज की मानसिक स्वस्थता ही महिलाओं के सम्मान की गारंटी है।
समाज की मानसिक स्वस्थता ही महिलाओं के सम्मान की गारंटी है।

अन्य वर्षों की भांति ही यह वर्ष बस वीतने को है। पतित पावनी गंगा मैया अब तक जाने कितने गैलेन पवित्र जल समुद्र मे डालकर खारा बना चुकी है। लैकिन लगता है कि समाज अभी ज्यों का त्यों है। आज जिस लेख को मैं आज पुनर्सम्पादित कर रहा हूं यह सन 2013 के आखिरी महिनों में मैने नवभारतटाइम्स में लिखा था। तब से सरकारें बदल गयी सत्ता बदल गयी। आशा बदली अरमान बदले पर न बदली तो आदमी की फितरत। यह फितरत है नग्नता की।2013 तक जो कारनामे कांग्रेसी दिग्गजों के दिखाई दे रहे थे आज सत्ता बदलने के साथ लगता है कि नग्नता ने भी पाला बदल लिया है। उस समय स्थान स्थान पर कांग्रेसी नेता एसे मामलों में सामने आ रहे थे तो आज स्वामी चिन्मयानंद जैसे स्वच्छ छवि वाले लोगों के कारनामे नजर आ रहे हैं। आइये नवभारतटाइम्स में 2013 में छपे मेरे विचारों को जानिए। 
वर्ष 2012 की समाप्ति से पहले भी एक एसी घटना ने भारतीय समाज व सत्ता को विचलित कर दिया है।जवकि एक तरफ भारत में लोकतंत्र में स्त्री को आरक्षण पर विल पास कराकर भारतीय सत्ताधीश व विपक्ष अपनी अपनी पीठ ठोक रहे हैं वहीं इसी समाज में स्त्री के आधुनिक रुप ने स्त्री को कई मोर्चो पर कमजोर भी कर दिया है।जब समाज का आदर्श अपना अतीत न होकर दूसरे देशों का वर्तमान बन जाता है तो उस देश की स्थिति वही होती है जो वर्तमान समय में भारत की है। एशिया दुनिया का एकमात्र वह स्थान बन चुका है जहाँ पस्चिमी देशों का सड़ा गला हर सामान विचार व सभ्यताऐं अपनाऐं जाते हैं।
एक तरफ पश्चिम में पूर्वी सभ्यता का डंका बजने की स्थिति है वहाँ का समाज अब नग्नता से बाज आ चुका है और वे नग्नता पर कानून बना रहै हैं एसे में भारत व भारत का जन समाज नग्नता को अपनाने में लगा पड़ा है एक तरफ भारत का कानून समलैंगिकता को तो कानूनी मान्यता दे ही चुका है वहीं बहुत से भारतीय (जिन्हैं भारतीय कहना तो शायद उनका अपमान है एग्लोंइण्डियन कहना वे श्रेयष्कर मानते हैं )अभी भारत में सेक्स फ्री करने की माँग करते रहैं है फिर एसे में बलत्कार जैसी घटना होना सामान्य सी बात है ।                    
जबकि एक रेप के केस में सारा देश आन्दोलन से गुजरा हो, सारे देश का जन जीवन अस्तव्यस्त हो, एसे में  देश की सत्ता व असम प्रदेश कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य और बोडोलैंड टेरटोरियल काउंसिल के पार्टी कॉर्डिनेटर बिक्रम सिंह सरकारी सुविधाएं और रियायत दिलाने के नाम पर कई महीनों से महिला का यौन शोषण कर रहा था जिसकी बलत्कार के मामले में मौके से गिरफ्तारी तथा उसकी महिलाओं द्वारा जमकर धुनाई और तो औऱ शुरुराती जाँच में रेप की पुष्टि पूरी पार्टी पर ही उंगली उठाती है।क्योंकि पिछले मामले में भी दिल्ली की केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार का रवैया अच्छा नही है।
एक और आन्दोलन क्यों करने की नौवत आई क्यों, आन्दोलन से पहले ही मामले का संज्ञान नही लिया गया और जब आन्दोलन अपना रुख अख्तियार कर ही चुका था तो क्यों इसे असंबैधानिक तरीके से कुचला गया।दिल्ली पुलिस की भूमिका पर पिछले दिनों में लगातार बहुत से आरोप  लगते रहैं हैं। कई बार कोर्ट भी दिल्ली पुलिस की भूमिका पर केवल प्रश्न चिन्ह लगाने के साथ  फटकार भी लगा चुका है और सबसे ज्यादा गौर करने की बात यह है कि खुद राज्य की मुख्यमंत्री जो कि खुद कांग्रेसी ही हैं ने ही दिल्ली पुलिस की भूमिका पर उँगलियाँ उठाई हैं।और जब खुद मुख्यमंत्री भी पुलिस की भूमिका से परेशान हैं तो सामान्य दिल्ली वासी का क्या हाल होगा ।
                        
दिल्ली रेप काण्ड में केवल वैचारी दामिनी या निर्भया की ही आवरु से खिलबाड़ नही हुआ अपितु इस काण्ड से दिल्ली पुलिस की रामदेव बाबा काण्ड के समय की बची खुची आवरु भी तार तार हो गयी। उधर अगर नजर डालते हैं देश की महान राष्ट्रीय सरकार पर  तो उसके मंत्री अजीवो गरीब वयान देते फिर रहे हैं और वयान दे देकर अपना नाम मीडिया में उछालने का क्रम चल रहा हैं ।कल शशि थरुर जी का वयान आया उससे पहले देश की सरकार के मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल जी का वयान चर्चा में रह ही चुका है जिससे पत्नियों को भोग की वस्तु बताकर इसाई बाइविल की ही पुष्टि कर दी है। जहां महिला को केवल भोग की वस्तु माना जाता है। जिस सरकार के मंत्री महिलाओं के बारे में एसे उज्जवल विचार रखते हों उनकी सरकार में महिलाऐं कितनी सुरक्षित हो सकती हैं। और अगर हम बलात्कार पर कानून की बात कर रहै हैं तो भाईयों कानून किसी रोग की दवा के रुप में होना चाहिये यह सही है कि बलत्कार दुनिया का सबसे जघन्यतम अपराध है।
कत्ल में तो प्राणी तुरन्त मर जाता है लैकिन बलत्कार एक एसा क्रूरतम कर्म है जिसमें नारी तिल तिल करके उस घटना को याद कर रोज मरती है दुनिया उस बेचारी को प्रश्न पूछकर और भी परेशान करती है कानून भी पीड़ित को और पीड़ा ही देता है उसे कदम कदम पर एसे पेश किया जाता है जैसे वह खुद ही दोषी हो, यह क्रूरक्रम उसने खुद  ही किया हो यानि कि पाप की सजा पीड़ित को मिलती है। यह एक सामाजिक अत्याचार ही है।
आज हर तरफ से आवाज आ रही है कि बलत्कार के दोषी को सजाये मौत दी जानी चाहिये,कोई कह रहा है कि नपुंसक बना देना चाहिये।कोई कह रहा है कि बलत्कारी को 30 साल की उम्र कैद दी जानी चाहिये ।सब तरफ से आती आवाजे विल्कुल सहीं हैं। लेकिन यह तो देखो कि इसकी माँग करने कैसे कैसे लोग अपना प्रचार कर रहें हैं और माँग करने का तरी का क्या है अभी पिछले दिनों एक माडल ने विल्कुल नंगा सा पोज देते हुये बलत्कार की शिकार बच्ची के लिए न्याय की माँग की क्या उसकी माँग व माँग का तरीका कोई जायज कह सकता है कैवल नाम के लिए कुछ भी कितना भी गंदा करने अच्छे की कल्पना की जा सकती हैं क्या।
   
आज इस केस के बाद बलत्कार की घटनाओं में जगह जगह पर और इजाफा होना इस बात का सबूत है कि बलत्कारियों के हौंसले तो और भी ज्यादा बुलन्द हो रहै हैं। रोग का निदान करने बाला वैद्य अगर रोग का कारण न तलाशे तो रोग  कम नही होगा अपितु और वढे़गा।अब रोग का कारण तलाशा जाए तो अन्य कारणों के अलावा आजकल हर तरफ नग्नता का वातावरण अधिक दोषी है जो  व्यक्ति को कुंठित कर रहा है और वही कुण्ठा कहीँ भी मौका पाकरभूखे भेडि़ये की तरह झपट पड़ती है।और कुण्ठा के कारण आदमी हैवान बन जाता है और  अनर्थ कर देता है।और फिर जो सबसे ज्यादा अनर्थ कर रहै हैं वे ही सबसे ज्यादा चिल्ल पों मचाते हैं।उदा. के लिए ये सेक्सी पोज दैने बाले वेआवरु अभिनेता तथा अभिनेत्रियाँ। आज शहरों शहरों में नई प्रकार की प्रतियोगिताऐं चलपड़ी है। जिसमें मिस्टर व मिस्ट्रेस छाँटे जाते हैं जो जितना ज्यादा नंगा वही इन प्रतियोगिताओं का विजेता।
आजकल देखने में आ रहा है कि अपने आपको सेक्सी कहलवाने में युवाओं व युवतियों को ही नही अधेड़ नर नारी भी वड़ा गर्व महसूस कर रहे हैं ।समाचार पत्रों में उल्टे सीधे नग्नता दिखाने वाले विज्ञापन व नग्न अभिनेत्रियों के पोज भी कम दोषी नही हैं।आजकल टी.वी. व फिल्मों के साथ ही फूहड़ हंसी मजाक के आयटम सांग व कामेडी शो की स्थिति तो इतनी घातक है कि बच्चों के साथ आप फिल्म या टी.वी शो अगर देखते हैं तो वेहया होकर ही देख सकते हैं। आजकल के सरकारी विज्ञापन जैसे आजकल आ रह��� शराव का विज्ञापन क्या स्वस्थ समाज का निर्माण करेगा।स्वस्थ समाज ही बलत्कार का निर्णायक इलाज होगा। कोई भी कानून तब तक कामयाब नही होगा जब तक कि स्वस्थ समाज नही है। समाज की स्वस्थता ही महिलाओं के सम्मान की गारंटी है। बलत्कार पर कानून बनाने से पहले जरुरत है तो इस बात की कि फिल्मों पर कठोर सेन्सर नियंत्रण लगाया जाए।टी.वी. व समाचार पत्रों से नग्नता वाले विज्ञापन व सामिग्रियों पर प्रतिवंध लगाया जाए। गाँव व शहरों में होने बाली मिस्टर मिस्ट्रेस प्रतियोगिताओं पर नियंत्रण किया जाए या फिर सही मायने में तो प्रतिवंध ही लगाया जाए।
मैने अनेको विद्यालयों में जिनमें 12 से 15 वय तक की युवतियाँ पढ़ती देखी है। उनकी ड्रेस इतनी भौड़ी है कि देखने बाला लजा जाए लैकिन पता नही उनका  रहा थाप्रबंधतंत्र क्यों ऐसी ड्रेस को मान्यता दे रहा है और क्यों इसमें पढ़ाने वाले अभिभावक अपने बच्चों को एसी ड्रेस पहनने को मजबूर कर रहै है अभिभावको को चाहिये कि वे प्रबंधतंत्र से बात करे और ऐसी ड़्रेस पहनाने से मना करें जिससे निश्चित ही  कुछ एसी घटनाओं पर लगाम लगेगी। अपने युवा बच्चों लड़के या लड़की पर दोस्त की तरह व्यवहार कर के भी आप इन घटनाओं पर कुछ लगाम लगा पाऐंगे

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