सामाजिक व्यवस्थाओं का वर्गीकरण जातिगत ना होकर आर्थिक और क्रमानुसार हो। राकेश कुमार वार्ष्णेय फ्रीलांस जर्नलिस्ट।
सामाजिक व्यवस्थाओं का वर्गीकरण जातिगत ना होकर आर्थिक और क्रमानुसार हो। राकेश कुमार वार्ष्णेय फ्रीलांस जर्नलिस्ट।
शिक्षा क्षेत्र से लेकर सरकारी अथवा गैर सरकारी नौकरियों में जातिगत चयन प्रक्रिया से अनेक क्षेत्रों मे योग्यता का स्तर निम्न से निम्न स्तर पर पहुंचता जा रहा है आखिर जातिगत आधार पर किसी भी चयन प्रक्रिया के अंतर्गत चयन भारत में कहां तक उचित है। यह अनेकों वर्षों से एक मुद्दा बना हुआ है।
बदलते भारत की तस्वीर में अब एक बदलाव यह भी आवश्यक है कि सामाजिक व्यवस्थाओं में नए सिरे से वर्गीकरण किया जाना चाहिए जो जनता का आर्थिक एवं कर्मानुसार वर्गीकरण कर सके क्योंकि हजारों साल पहले भी हमारे जातिगत वर्गीकरण का यही आधार था लेकिन समय बीतने के साथ एक सुसज्जित घर भी सफाई न करने से कूड़े का ढेर बन जाता है। उसी प्रकार गुलामी के समय में जातिगत व्यवस्था की कमियों को समयानुरुप ठीक न करने के कारण कुछ कमियां आ गई हो सकती है किन्तु निराकरण भी उसी अनुरुप होना चाहिए।
आज के परिवेश में हजारों साल से चली आ रही जातिगत व्यवस्थाओं को संविधान में लागू करके अनेकों विषमताओं को जन्म दे दिया गया है इन अनेकों कारणों से मद्देनजर मौजूदा प्रगतिशील शासन को यह शोध प्रस्ताव भेजा जा रहा है भारत की जागरूक जनता से उक्त विषय पर रतिक्रिया एवं टिप्पणियां आमंत्रित हैं आप हमारे पोर्टल के कमेंट बॉक्स में टिप्पणी कर सकते हैं और हमें बता सकते हैं अपने सुझाव।
राकेश कुमार वार्ष्णेय
चीफ एडमिन नमामि गंगे न्यूज़ पोर्टल
फ्रीलांसर सीनियर जर्नलिस्ट
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