ज्वाला माँ- की वह कथा जिसमें सम्राट अकबर हुआ माँ के सामने नतमस्तक।
ज्वाला माँ- की वह कथा जिसमें सम्राट अकबर हुआ माँ के सामने नतमस्तक।
ज्वाला माँ का पवित्र दरवार जहाँ गया था अकबर हार। |
कहते हैं कि अकबर के समय में एक बार ज्वाला देवी में माता का उत्सव चल रहा था । और इसी उत्सव में ज्वालादेवी के एक प्रसिद्ध भक्त ध्यानू जो हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी थे, हजारों यात्रियों के साथ माता के दरबार में दर्शन के लिए जा रहे थे। बड़ी संख्या में यात्रियों को जाते देख अकबर के सिपाहियों ने चांदनी चौक, दिल्ली में उन्हें रोक लिया और कारवां के प्रधान ध्यानू को पकड़कर अकबर के दरबार में पेश किया गया।
अकबर ने पूछा तुम इतने सारे लोगों को लेकर कहां जा रहे हो? ध्यानु ने हाथ जोड़कर विनम्रता से उत्तर दिया कि हम ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहे हैं। और हमारे साथ जो सभी लोग हैं वे सब भी माता के ही भक्त हैं। यह सुनकर अकबर ने कहा यह ज्वालामाई कौन है और वहां जाने से क्या होगा? तब भक्त ध्यानू ने कहा कि वे संसार का जननी और जगत का पालन करने वाली है।उनकी महिमा अपरंपार है और उनके स्थान पर बिना तेल और बाती के ज्वाला जलती रहती है।
ऐसे में कुटिलता से अकबर ने कहा यदि तुम्हारी बंदकी पाक है और सचमुच में वह यकीन के काबिल है तो तुम्हारी इज्जत जरूर रखेगी। लेकिन यदि वह यकीन के काबिल नहीं है तो फिर उसकी इबादत का क्या फायदा?
ऐसा कहकर अकबर बोला कि इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन काट देते हैं, तुम अपनी देवी से कहकर दोबारा जिंदा करवा लेना। इस तरह घोड़े की गर्दन काट दी गई।
घोड़े की गर्दन कट जाने के बाद ध्यानू ने अकबर से कहा, "मैं आप से प्रार्थना करता हूँ कि एक माह तक घोड़े की गर्दन और धड़ को सुरक्षित रखी जाऐ।" अकबर ने ध्यानू की बात मान ली।
बादशाह से अनुमति लेकर ध्यानू मां ज्वाला देवी के दरबार में जा बैठा। स्नान, पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया। प्रात: काल ध्यानू ने हाथ जोड़कर माता से प्रार्थना की और कहा हे मां अब मेरी लाज आपके ही हाथों में है। कहते हैं कि अपने भक्त की लाज रखते हुए मां ने घोड़े को पुन: जिंदा कर दिया।
यह देखकर अकबर अचम्भित रह गया। तब उसने अपनी सेना बुलाई और स्वयं मंदिर की ओर चल पड़ा। अकबर ने माता की परीक्षा लेने के लिए या उस स्थान को क्षति पहुंचाने के लिए कई प्रयास किये। सर्वप्रथम उसने पूरे मंदिर में अपनी सेना से पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला नहीं बुझी। कहते हैं कि तब उसने एक नहर खुदवाकर पानी का रुख ज्वाला की ओर कर दिया लेकिन तब भी वह ज्वाला नहीं बुझी। तब जाकर अकबर को यकीन हुआ और उसने वहां सवा मन
सोने का छत्र चढ़ाया लेकिन माता ने इसे स्वीकार नहीं किया और वह छत्र गिरकर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। आप आज भी अकबर का चढ़ाया वह छत्र ज्वाला मंदिर में देख सकते हैं। पृथ्वी के गर्भ से इस स्थान पर नौ ज्वालाऐं निकल रहीं हैं जिनकी इस स्थान पर पूजा की जाती है। और यह मंदिर इन्ही ज्वालाओं के ऊपर बनाया हुआ है। इन माता की नौ ज्योतियों को महाकाली, अननपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विन्ध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है।यह स्थान नगरकोट अर्थात कांगड़ा देवी से कुल 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
अकबर द्वारा चढ़ाया गया सबा मन सोने का छत्र जिसे माता ज्वाला ने स्वीकार ही नही किया और उसे जाने किस धातु में परिवर्तित कर दिया आज तक कोई वैज्ञानिक यह पता लगा नही पाया कि यह कौन सी धातु है। |
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