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असुर शक्तियों और उनकी पाशविकता पर विजय का पर्व है विजयदशमी संघ कार्य ने यह सिद्ध कर दिया है -- ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय

  असुर शक्तियों और उनकी  पाशविकता पर विजय का पर्व है विजयदशमी संघ कार्य ने यह सिद्ध कर दिया है -- ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय



आज विजयादशमी है इसे दशहरा भी कहते हैं यह भारतीय समाज में मनाए जाने वाला एक विशेष त्योहार है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा भी यह त्यौहार विशेष रूप से मनाया जाता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए यह पर्व इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन संघ की स्थापना हुई थी इस दिन को अपने स्थापना दिवस के रूप में मनाता है यह भारतीय समाज के लिए शौर्य दिवस के रूप में भी मनाया जाता है जैसा किसके नाम से विदित है यह विजय का पर्व है और प्रतिवर्ष दशमी तिथि को आता है विजयादशमी के नाम से जाना जाता है विजयादशमी अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को प्रतिवर्ष आती है
और संपूर्ण भारतीय समाज इस पर्व को अत्यंत उत्साह और आशा से परिपूर्ण होकर मनाता है इस वर्ष आज यानी कि 8 अक्टूबर को यह पर्व है
          भारतीय समाज के लिए एक ऐतिहासिक पर्व है यह दिवस हमारे समाज के सामाजिक राजनीतिक धार्मिक ताने-बाने से जुड़ा है जिसमें अनेकों यादगार समाज और धर्म से जुड़ी है इस पर्व का एक नाम दशहरा भी है और दशहरा व विजयदशमी दोनों ही शब्दों का अलग अलग सामाजिक राजनीतिक धार्मिक आध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य के  परिपेक्ष्य में अलग-अलग और सार्थक अर्थ है जैसे सामाजिक परिपेक्ष्य में ---दशहरा का शाब्दिक अर्थ होता है दस को हरने वाला और विजयादशमी  अर्थात दशम पर विजय का दिन
यह 10 हमारे अपने अंदर के 10 अवगुण हो सकते हैं हमारे स्वास्थ्य के 10 अवगुण हो सकते हैं अथवा समाज के 10 अवगुण भी हो सकते हैं सभी अर्थों में दशहरा विजय का दिवस है ऐतिहासिक रूप से विजयादशमी दशहरा रावण और महिषासुर पर विजय की यादगार के रूप में सारे समाज में मनाया जाता है इस दिन स्थान स्थान पर रावण कुंभकरण मेघनाथ आदि के पुतले जलाए जाते हैं और महिषासुर पर विजय के प्रतीक के रूप में महाकाली स्थान स्थान पर काली मेले के रूप में निकाली जाती है वैसे भी कुल मिलाकर चाहे जितनी व्याख्या की जाए मेरा मानना तो यह है कि यह पर्व है बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व, अनाचार पर सदाचार की विजय का पर्व अन्याय पर न्याय की विजय का पर्व, अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व, असत्य पर सत्य की विजय का पर्व और पाशविकता पर सात्विकता की विजय का पर्व
         यह पर्व वैसे हमारे सामाजिक संगठन का पर्व है और स्वास्थ्य संगठन का पर्व भी है. ऐतिहासिक रूप से इस पर्व याद दिलाता है मां दुर्गा की जिनकी उत्पत्ति संपूर्ण देव शक्तियों को एकत्र करने पर  हुई थी जब संपूर्ण देवी शक्तियां महिषासुर से पराजित हो गई तब सभी शक्तियों ने अपनी अपनी शक्तियों को एक विशेष शक्ति में संगठित किया जिसे दुर्गा कहां गया एकत्र शक्ति को समाज को प्रताड़ित करने वाले, दुर्गमासुर महिषासुर से मुक्ति दिलाई
               उसी प्रकार रावण के पाशविकताऐ जब अपने चरम पर आ गई और समाज को कहीं से भी मुक्ति नहीं दिखाई देती थी ऐसे समय में बन बन भटकते हुए राम ने जिसको रावण अपने सामने तुच्छ समझता था कोल, भील कपि ,वानरों को एकत्र करके एक ऐसी शक्ति एकत्र की जिससे रावण जैसे महाबलशाली असुर का विनाश हुआ और विशेष बात यह है कि ऐसा कभी किसी ने किया नहीं अभी अप्राकृतिक रूप से होता ही है आधुनिक समय में भी जब संपूर्ण भारतीय समाज पूर्णतया दिशा विहीन हो गया था और देश अंग्रेजों की गुलामी में था और खिलाफत आंदोलन फेल हो गया था और पाशविक शक्तियों ने महा उत्पात मचाया और मोपला जैसे कांड हुए और गांधीजी गांधी जैसे व्यक्ति ने भी इसका कोई विरोध नहीं किया अपितु एक प्रकार से उन पाशविक शक्तियों का सहयोग ही किया
  तब एक बिल्कुल निस्सहाय व्यक्ति ने समाज को संगठित करने का बीड़ा उठाया जिससे आजादी मिलने के बाद इस आजादी को बरकरार रखा जा सके . आजादी पाने के लिए तो बहुत सारे संगठन कार्यरत थे . आजादी बरकरार रहे इस तरफ किसी का भी ध्यान नहीं था तो  इस कार्य को पूर्ण करने का बीड़ा उठाया परम पूजनीय डॉ केशवराव बलिराम जी हेडगेवार जी ने  और आज हमारा समाज को हर तरफ से सुरक्षित है सुरक्षित हाथो मे है. और देश विकसित
होने के कार्यों के द्वारा देख रहे हैं तो यह दिवस जिसे विजयदशमी कहते हैं एक प्रकार से विजय का पर्व ही है यह  आधुनिक समय में भी सिद्ध हो चुका है
             
                  स्वास्थ्य के लिहाज से भी विजयदशमी एक विशेष पर्व है अश्विन मास में नवरात्रों के 9 दिन के बाद आता है और उन दिनों में हम उपवास रखते हैं हमारे शरीर की शुद्धि हो जाती है और इसके बाद आता है दशमी का दिन जिस दिन शरद की शुरुआत होती है इन दिनों में चंद्रमा एक विशेष अमृत नई किरण डालता है किरणों का सेवन करने से एवं दमा के रोगी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकती हैं 56 दिनों में चंद्रमा की किरणों का प्रभाव पृथ्वी पर अत्यधिक होता है उसमें दमोह का कोई रोगी इन पांच छह जनों की रात्रि को चंद्रमा की किरणों में रहकर जागरण करें तथा चावल की खीर बनाकर रात को चंद्रमा की रोशनी में रखें जिसमें चंद्र की किरणें उसमें प्रवेश कर सके और शुरू है उसे खाए तो शीघ्र ही सोच में दमा के लोगों को स्वास्थ्य लाभ होता है इस  इस खीर में एक विशेष औषधि और डाली जाती है जिसे हम अपामार्ग के नाम से जानते हैं किंतु यह रोशनी विशेष विधि द्वारा तैयार की जाती है शायद अगले साल तक हम कुछ औषधि को बनाने की विधि प्राप्त कर पाए तो समाज को उसका लाभ भी प्राप्त करा पाएंगे वैसे यह खीर भी अति लाभकारी होती है जो बिना किसी औषधि के तैयार हो सकती है
 विजयादशमी आप सभी के लिए लाभकारी हो 
ऐसी कामना के साथ 
आपका 
ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय 
संपादक
                  नमामि गंगे न्यूज़ पोर्टल व चैनल

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