टी.एन. शेषन: चुनाव आयोग की शक्तियों का परिचय राजनैतिक दलों को कराने वाले इस सैनानायक को ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय का अन्तिम प्रणाम।
चुनाव आयोग की शक्तियों का परिचय राजनैतिक दलों को कराने वाले सैनानायक टी.एन. शेषन को हमारा अन्तिम प्रणाम।
टी.एन. शेषन: चुनाव आयोग की शक्तियों का परिचय राजनैतिक दलों को कराने वाले इस सैनानायक को ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय का अन्तिम प्रणाम। |
चुनाव आयोग (Election Commission) है क्या यह अगर सही अर्थों में अगर किसी ने बताया तो वे थे चुनाव आयुक्त टी.एन.शेषन उन्हौने ही पहली बार इस शक्तिशाली संवैधानिक संस्था की शक्तियों को पहिचाना और लागू भी किया नही तो इनसे पहले सभी चुनाव आयुक्त(Election Commissioner) तो सरकार के हाथ की कठपुतली थे। उन्होंने देश को बताया ही नही अपितु महसूस भी कराया कि चुनाव आयोग एक ऐसी संस्था है जिसके हाथों में लोकतंत्र की सुरक्षा की वास्तविक जिम्मेदारी है। इससे पहले चुनाव आयोगके बारे में या तो लोग जानते नही थे और जो जानते थे वे भी इतना कि हाँ चुनाव आयोग कोई ऐसी संस्था है जो सिर्फ चुनाव के दौरान ही काम करती है और चुनाव बाद यह स्वतः समाप्त हो जाती है। इन सबके अलावा टी एन शेषन को मतदाता पहचान पत्र और चुनाव आचार संहिता लागू करवाने का श्रेय भी जाता है।
टी.एन. शेषन: चुनाव आयोग की शक्तियों का परिचय राजनैतिक दलों को कराने वाले इस सैनानायक को ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय का अन्तिम प्रणाम।
आजादी के बाद से टी एन शेषन के समय तक बहुत से चुनाव आयुक्त हुए लेकिन किसी को चुनाव आयोग की शक्ति का पता ही नहीं था वे सभी केन्द्र सरकार की कठपुतली के रुप में कार्य करते रहे थे। टी एन शेषन ने ही सारे देश को दिखाया कि क्या चीज होती है चुनाव आयोग। टी एन शेषन भी अन्य नौकरशाहों की तरह ही एक नौकरशाह थेकिन्तु इस सबके बाबजूद भी शेषन ने जनता को उसकी ताकत उसका हथियार देने की तरफ कदम बढाया वे वेसक एक नौकरशाह की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे थे किन्तु उन्होंने इस बात को समझा और देश को भी समझाया कि लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत मतदाता ही है। उन्हौने मतदाता को मजबूत करके उसे उसकी शक्तियों से परिचित कराया।
टी.एन. शेषन: चुनाव आयोग की शक्तियों का परिचय राजनैतिक दलों को कराने वाले इस सैनानायक को ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय का अन्तिम प्रणाम।
टी एन शेषन जिनका पूरा नाम, तिरुनेलै नारायण अइयर शेषन था ये भारत के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त थे। इनका कार्यकाल १२ दिसम्बर १९९० से लेकर ११ दिसम्बर १९९६ तक था।टी एन शेषन का जन्म केरल के पलक्कड़ जिले के तिरुनेलै नामक स्थान में हुआ था। मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक परीक्षा उतीर्ण कीकरने वाले शेषन ने वहीं पर कुछ समय के लिये वे लेक्चरर का दायित्व भी संभाला।
देश के इस दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 1990 से 96 तक था। शेषन आजाद भारत के ऐसे नौकरशाह के रूप में हमेशा याद किये जाते रहेंगें जिसके पास मौलिक सोच थी और जो देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने की दिशा में विवादास्पद होने की हद तक जा सकते था। चाहैं उनके आलोचक उन्हें सनकी क्यों न कहते होंं, लेकिन भ्रष्टाचार मिटाने के लिए यह व्यक्ति किसी के भी खिलाफ जाने का साहस रखता था। देश के हर वाजिब वोटर के लिए मतदाता पहचान पत्र प्रदान करना उन्हीं की पहल का नतीजा था। पद से मुक्त होने के बाद उन्होंने देशभक्त ट्रस्ट बनाया। वर्ष 1997 में उन्होंने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा, लेकिन के आर नारायणन से हार गए। उसके दो वर्ष बाद कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन उसमें भी पराजित हुए।
जिस समय टी एन शेषन जो एक दक्षिण भारतीय थे को चुनाव आयुक्त बनाया गया था उस समय देश में मतदाता की कोई वेल्यु ही नही थी। राजनैतिक पार्टियाँ उस मतदाता को हर प्रकार से बेवकूफ समझ रहीं थी। उसे केवल बोट देने वाली मशीन की तरह समझा जा रहा था। खासकर सत्ताधारी दल द्वारा। जो केवल तभी डीजल खाती थी जबकि वोट देने का समय आता है। उसके बाद उसे बंद करके एक तरफ रख दिया जाता था। अर्थात देश में सत्ताधारी दल नोट और शराव के जरिये मतदाता से बोट लेकर चुनाव जीतता फिर उसे उसके हाल पर छोड़ देता यह ही चल रहा था। चुनावों में खूब छल प्रपंच प्रयोग होता था। चुनाव पेटियाँ केप्चर की जाती थी। चारों तरफ अलेक्शन में मार धाड़ का माहौल हो जाता था। लोग डर से बोट देने नहीं जाते थे। महिलाऐं तो विल्कुल भी नही जाती थी खासकर सवर्ण महिलाऐं अलेक्शन के समय घर में रहना सुरक्षित समझती थी।और इसी कारण चारों तरफ माफियाओं का बौलबाला था। क्योंकि ये माफिया ही अलेक्शन में सरकारों को फायदा पहुँचाते थे इनके गुर्गे पूरे समाज को पूरे पाँच साल तक प्रताणित करते रहते थे। और राजनैतिक पहुँच के कारण पुलिस प्रसाशन भी कुछ नही कर पाता था।अतः उन्हौने यथा योग्य चुनाव सुधार किये जिससे सत्ता के धमक धारियों के भी पर्दे खुल गये वे चुनाव आयोग को अपना शत्रु समझने लगे।
उन्हौने चुनाव के नीयमों को सख्ती से लागू करवाया तथा अपने कार्यकाल के दौरान उन्हौने प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से लेकर लालू प्रसाद यादव किसी को भी नही बख्शा। वे ही प्रथम चुनाव आयुक्त थे जिसने गड़वड़ी की आशंका होने पर चार बार चुनाव की तारीखें बदल दीं। बूथकैप्चरिंग न हों इस लिये उन्हौने केन्द्रिय अर्धसैनिक बलों को बिहार में तैनात किया।
शेषन ने ही प्रथम बार भारत में पहिचान पत्र से लोगों की पहिचान करायी चुनाव में इसका प्रयोग कराने से गलत बोट पड़ने की प्रथा पर लगाम लगाई। नेताओं के भरपूर विरोध के बाबजूद और प्रक्रिया को खर्चीला बताने के बावजूद वे न झुके और न ही रुके और जो काम उन्हैं करना था किया ।
आज देश उनके अन्तिम विदाई के समय उन्हैं नमन करता है। मैं ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय उन्हैं आज अन्तिम विदाई देते हुए अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ। उस महान सेनानायक को अन्तिम प्रणाम करता हूँ जो सैनिक न होते हुये भी देश के राजनैतिक दलों से युद्ध किया और सामान्य नागरिक को वो शक्तियाँ दीं जिनके बारे मेें समाज को कोई जानकारी ही नही थी। ये हथियार भारत के नागरिकों को हमेशा टी एन शेषन की याद दिलाते रहेंगे।
पहचान पत्र से चुनाव की शुरुआत कराई शेषन के कार्यकाल में ही चुनावों में मतदाता पहचान पत्र का इस्तेमाल शुरू हुआ। शुरू में नेताओं ने इसका विरोध किया था और इसे बहुत खर्चीला बताया था। लेकिन शेषन नेताओं के आगे नहीं झुके और कई राज्यों में तो मतदाता पहचान पत्र तैयार नहीं होने की वजह से उन्होंने चुनाव तक स्थगित करवा दिए थे। शेषन जब नए-नए मुख्य चुनाव आयुक्त बने थे तब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आयोग में कोई काम तो होता नहीं तो वो करते क्या हैं? तब उन्होंने कहा था कि वह अपने दफ्तर में बैठकर क्रॉसवर्ल्ड पजल्स खेलते हैं। बता दें कि शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने से पहले चुनाव आयोग की छवि बहुत अच्छी नहीं थी।
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